Daulatabad Fort (19°56'30.76"N; 75°12'44.26"E) built on a 200-meter-high conical hill, was one of the most powerful forts of the Medieval Deccan. The entire fort complex consists of an area measuring approximately 84.11 hectares and represents a unique combination of military engineering, amazing town planning with unique water management system and architectural marvels with strong political and religious hold.
It was founded by The Yadavas of Deogiri ("The hill of Gods") in 11th century CE. After various attacks, the Khilji Dynasty annexed Daulatabad in 12th century CE. Sultan Muhammad-bin-Tughluq, renamed Deogiri as Daulatabad ("Abode of Wealth") and got the capital shifted from Delhi to Daulatabad in 1328 CE but for various reasons he re-transferred his capital back to Delhi. In a quick succession of political events the area was wrested from the imperial authority and the Bahamani rulers under Hasan Gangu extended their control over Daulatabad as well. By 1499, the NizamShahis of Ahmednagar not only captured but also made Daulatabad as their capital in 1607 CE. Daulatabad was finally captured by Mughals under Akbar and Shah Jahan, after a prolonged siege in 1633 CE and was under their suzerainty for a very short period. Daulatabad was under the control of the Marathas before the Nizams of Hydrabad took control of it in 1724 CE.
The fort is one of the most complex and intricate forts of Deccan, having the honour of the capital of Yadavas for over a century (1187-1294), capital of the India during Tughlaq period (1328) and capital of Nizamshahis of Ahmednagar (1607 CE).
Daulatabad is also important from religious point of view as it is from here that the Sufism spread in Deccan. It is here that the famous medieval saint Janardhana Swami, the Guru of Ekanath attained samadhi on top of the hill.
The defence system consists of two moats and a glacis, three encircling fortification walls with wall walks, machicolations bastions at regular intervals, zigzag and lofty gates with iron spikes, strategic position of gun-turrets and andheri (a rock-cut tunnel). The combination of hill and land fort, is divided into small sectors encircled by fortification walls. The fortified Ambar Kot is planned for common people. MahaKot area having distant lines of enclosure walls served the residential area for higher class of the society. The Kala Kot is the royal residential area with double line of fortifications. The fort consists of structures like Stepped wells, Reservoirs, Minar, Hammam, Baradari, Andheri, Temples, Mosques, beside 10 unfinished rock cut caves. The water management system is unique with a network of terracotta pipe lines, drains etc.
Because of its strategic location and its strong protective defenses, it is aptly called as an impregnable fort and its possession was craved by most powerful dynasties ruling between 12th – 17th Century CE and its ownership became a matter of pride and prestige.
दौलताबाद किला (19°56'30.76' उ 75°12'44.26' पू) 200 मीटर ऊंची शंक्वाकार पहाड़ी पर बना है तथायह मध्यकालीन दक्कन के सबसे शक्तिशाली किलों में से एक था। सम्पूर्ण किला परिसर लगभग 84.11 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है और आपने सैन्य अभियांत्रिकी, अद्वितीय जल प्रबंधन प्रणाली के साथ साथ नगर नियोजन और अपनी राजनीतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि में उत्कृष्ट वास्तुकला का एक अनूठा संयोजन प्रदर्शित करता है।
इसकी स्थापना 11वीं शताब्दी ई. में देवगिरी ('देवताओं की पहाड़ी') के यादवों ने की थी। विभिन्न हमलों के बाद, खिलजी राजवंश ने 12वीं शताब्दी ई. में दौलताबाद पर कब्जा कर लिया। सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी का नाम बदलकर दौलताबाद (धन का निवास) रखा और सन् 1328 ई. में अपनी राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित किया, लेकिन थोड़े ही समय बाद विभिन्न कारणों से वहअपनी राजधानी को वापस दिल्ली ले गया। राजनीतिक घटनाओं के तेजी से बदलते क्रम में इस क्षेत्र को सल्तनत के नियंत्रण से छीन लिया गया और हसन गंगू के अधीन बहमनी शासकों ने दौलताबाद पर अपना नियंत्रण बढ़ाया। सन् 1499 ई. तकअहमदनगर के निज़ाम शाहियों ने न केवल दौलताबाद पर कब्ज़ा कर लियाबल्कि सन्1607 ई. में इसे अपनी राजधानी भी बना लिया। सन् 1633 ई. में एक लंबी घेराबंदी के बाददौलताबाद पर अंततः अकबर और शाहजहाँ के नेतृत्व में मुगलों ने अधिकार कर लिया किन्तु यह बहुत कम समय तक मुगलोंके आधिपत्य में रहा। सन् 1724 ई. में हैदराबाद के निज़ामों द्वारा इस पर नियंत्रण करने से पहले दौलताबाद किला कुछ समय के लिए मराठों के नियंत्रण में भी रहा।
यह किला दक्कन के सबसे जटिल किलों में से एक हैजिसे एक शताब्दी से अधिक समय तक यादवों की राजधानी (1187ई.-1294ई.), तुगलक काल (1328ई.) के दौरान भारत की राजधानी और अहमदनगर के निज़ामशाही (1607 ई.) की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है।
दौलताबाद धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं से दक्कन में सूफीवाद फैला। यहीं पर प्रसिद्ध मध्ययुगीन संत एकनाथ के गुरु संत जनार्दन स्वामीने पहाड़ी की चोटी पर समाधि ली थी।
किले की मजबूत रक्षा प्रणाली में दो खाई और एक खड़ी काट वाला किनारा, तीन घेरे की किलेबंदी तथानियमित अंतराल पर मोर्चाबंदी बुर्ज, टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर प्रवेश और वहाँ लोहे की कीलें जड़ित ऊंचे विशाल द्वार,तोप-बुर्ज और अंधेरी (चट्टान को काटकर बनाई गई सुरंग) की रणनीतिक अवस्थिति शामिल है।
पहाड़ी किले और ज़मीनी किलेके संयोजन से बना यह दुर्गप्राचीरों से घिरे कई छोटे-छोटे ईकाइयों में विभाजित है। अंबरकोट का क्षेत्र आम लोगों के लिए बनाया गया था । दूर-दूर तक फैली हुई दीवारोंके मध्य बसा महाकोटसमाज के उच्च वर्ग के लिए आवासीय क्षेत्र था। कालाकोटशाही आवासीय क्षेत्र है जिसमें किलेबंदी की दोहरी पंक्ति है। इस किले के परिसर में सीढ़ीदार कुएँ, जलाशय, मीनार, हम्माम, बारादरी, अंधेरी, मंदिर तथामस्जिद जैसी संरचनाएँ हैं, साथ ही चट्टान को काटकर बनाई गई 10 अधूरी गुफाएँ भी हैं। यहाँ की जल प्रबंधन प्रणाली अद्वितीय है जिसमें टेराकोटा पाइप लाइनों, नालियों आदि का जाल बिछा हुआ है।
इसकी रणनीतिक स्थिति और मजबूत सुरक्षात्मक प्रणाली के कारणइसे एक अभेद्य किला कहा जाता है। 12वीं शताब्दी ई. से 17वीं शताब्दी ई. के बीच शासन करने वाले सबसे शक्तिशाली राजवंशों ने इस पर अधिकार करने का प्रयास किया और इसका स्वामित्वप्राप्त करना उस समय गर्व और प्रतिष्ठा का विषय बन गया था।
दौलताबाद किल्ला ;19°56श्30ण्76श्उत्तरय 75°12श्44ण्26श्पूर्वद्ध 200 मीटर उंचीवर षंक्वाकार पर्वतावर निर्मित केलेला आहे. मध्यकालीन दक्खनातील सर्वात षक्तिषाली किल्ल्यामध्ये हा एक आहे. संपूर्ण किल्ला परिसर जवळपास 84.11 हेक्टर क्षेत्रात पसरलेला आहे. सैन्य अभियांत्रिकी, अव्दितिय जल-प्रबंधन प्रणालीच्या सोबतच अदभुत नगर नियोजन आणि मजबूत राजनितिक व धार्मिक तसेच वास्तुषिल्प चमत्काराचे हा एक अतुलनिय संयोजन दर्षवितो. किल्ल्याची स्थापना ई. सन 11 व्या षतकात देवगिरीच्या(देवतांचा पर्वत)यादवांनी केली होती.
विभिन्न आक्रमणा नंतर खिलजी वंषाने ई. सन 12 व्या षतकात दौलताबादवर कब्जा केला. सुल्तान मुहम्मद बिन तुघलक ने देवगिरीचे नाव बदलवुन दौलताबाद(धनाचे निवास)केले. ई. सन 1328 मध्ये राजधानीला दिल्लीतून दौलताबाद येथे स्थानांतरित केल्या गेली. परंतु विभिन्न कारणांमुळे त्याने आपली राजधानी पुनः दिल्लीला स्थानांतरित केली. राजनितिक घटनाच्या एक क्रमानंतर या क्षेत्राचे षाही अधिकार नश्ट झाले आणि हसन गंगूच्या अधिनस्थ बहामनी षासकांनी दौलताबाद वर आपले नियंत्रण वाढविले. ई. सन 1499 पर्यंत अहमदनगरचे निजामषाहींनी न केवळ दौलताबाद वर कब्जा केला तर ई. सन 1607 मध्ये याला आपली राजधानी सुध्दा बनविली. ई. सन 1633 मध्ये एका लांब घेराबंदी नंतर दौलताबादवर षेवटी अकबर आणि षाहंजहांच्या अधिन मुघलांनी कब्जा केला आणि खुप कमी कालावधी करिता त्यांच्या अधिन राहिला. ई. सन 1724 मध्ये हैदराबादचे निजामां द्वारा यावर कब्जा करण्यापूर्वी दौलताबाद मराठयांच्या नियंत्रणात होता. हा किल्ला दक्खनच्या सर्वात जटील आणि कठीण किल्ल्यापैकी हा एक. यास एक षतकाहून अधिक वेळ यादवांची राजधानी ( ई. सन 1187-1294) तुघलक काळ ( ई. सन 1328) च्या दरम्यान भारताची राजधानी आणि अहमदनगरचे निजामषहाची ( ई. सन 1607)राजधानी असल्याचा गौरव प्राप्त झाला. दौलताबाद धार्मिक दृश्टिकोनानुसार सुध्दा महत्वपूर्ण आहे, कारण येथूनच दक्खनमध्ये सूफिवाद पसरला. येथेच प्रसिध्द मध्ययुगीन संत जनार्दन स्वामी, एकनाथाचे गुरू यांनी पर्वताच्या टोकावर समाधी प्राप्त केली होती.
सुरक्षा प्रणालीत दोन खंदक आणि तीन वेढयांची किलेबंदीच्या भिंती, नियमित अंतराळ, बुरूज, लोखंडी खिळयांसोबतच वाकडे-तिकडे आणि उंच द्वार, तोफ-बुरूजांची रणनितीक स्थिती आणि अंधेरी (पर्वताला कापून तयार केलेले भुयार) सम्मिलित आहे. पर्वत आणि भूमि किल्ल्याचे संयोजन किल्ल्याची भिंतीनी वेढलेले छोटे-छोटे क्षेत्रांमध्ये विभाजित आहे. किल्लेबंदीत अंबरकोटा ची योजना जनसामान्य लोकांकरिता निर्मित केल्या गेली आहे. महाकोट क्षेत्रात दूर-दूर पर्यंत पसरलेल्या भिंती ज्या समाजातील उच्च वर्गा करिता निवासाचे क्षेत्राच्या रूपात कार्य करत होती. काळा कोट षाही निवास क्षेत्र आहे. यात किल्लेबंदीची दुहेरी ओळ आहे. किल्ल्यात पाय-या, विहिरी, जलाषय, मिनार, हमाम, बारादरी, अंधेरी, मंदिर, मस्जिद आणि पर्वतास कापून तयार केलेल्या 10 अपूर्ण लेणी आहेत. जलप्रबंधन प्रणाली भाजक्या मातीच्या नळयायुक्त नाल्या इ. अद्वितीय आहे. या रणनितीची स्थिती आणि मजबूत सुरक्षात्मक सुरक्षेच्या कारणामुळे याला उपयुक्त रूपाने एक अभेदय किल्ला म्हटल्या जाते आणि 12 ते 17 व्या षतकामध्ये षासन करणारे सर्वात षक्तिषाली राजवंषा द्वारे यावर नियंत्रण करने ही प्रत्येकाची महत्वकांक्षा होती, हे या किल्ल्याचे स्वामित्व गर्व आणि प्रतिश्ठेचा विशय निर्माण झाला होता.
DAULATABAD FORT AND MONUMENT THEREIN (EG. CHAND MINAR)
(1) Edited by Yazdani G., The early History of the Deccan, Part I-VI., Authority of the Government of Andhra Pradesh, by the Oxford University Press, London, Bombay, New york. (1960). (2) Edited by Yazdani G., The early History of the Deccan, Part VII-XI., Authority of the Government of Andhra Pradesh, by the Oxford University Press, London, Bombay, New york. (1960). (3) Ghosh A.,